ग़ालिब की शायरी हिंदी में
ग़ालिब की शायरी हिंदी में
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया। वर्ना हम भी आदमी थे काम के।
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है। आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए