मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी हिंदी में

मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी हिंदी में

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़्याल अच्छा है

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता  अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!  कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है  मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है