Mirza Ghalib Best Shayari

Mirza Ghalib Best Shayari

तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान,झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता ..

तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’ तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है..!

मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले

हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ, जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।

ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते, कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर

हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब, न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।

वो जो काँटों का राज़दार नहीं, फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं

खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है