Life
Shayari
पूछा हाल शहर का तो सर झुका के बोले लोग तो जिंदा है जमीर का पता नहीं
हँस कर कबूल क्या कर ली सजाएं मैंने यहां तो दस्तूर ही बना लिया हर इल्जाम मुझ पर लगाने का
तारीख हजार साल में इतनी ही बदली है पहले दौर पत्थर का था अब लोग पत्थर के है
पूरा बचपन हैंडराइटिंग सुधारने में गुजर गया और जिंदगी कीबोर्ड पर बीत रही है
कदर होती है इंसान की जरुरत पड़ने पर ही बिना जरुरत के तो हीरे भी तिजोरी में रहते है
फायदा सबसे गिरी हुई चीज है लोग उठाते ही रहते हैं
खुद को गलत भी सही इंसान ही मान सकता है
कुछ जख्मों की कोई उम्र नहीं होती ता उम्र तक साथ चलते हैं जिस्म की खाक होने तक
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