Humsafar   Shayari

सुन मेरे हमसफ़र, क्या तुझे इतनी सी भी खबर, की तेरी साँसे चलती जिधर,रहूँगा बस वही उम्र भर।

मेरे रास्ते मेरी मंजिलें, मेरे हमसफ़र मेरे हमनशीं, मुझे लूट कर सभी चल दिए, मेरे पास कुछ भी बचा नहीं।

उम्र भर का पसीना, उसकी गोद मे सुख जायेगा हमसफर क्या चीज है, ये बुढापे मे समझ आयेगा।

सफर में चलते चलते, अक्सर हाथ छूड़ जाते हैं जुदा कहां हो जाते हैं हमसफ़र, मगर हां रूठ जाते हैं।

राह भी तुम हो राहत भी तुम ही हो, मेरे सुख और दुख को बांटने वाली, हमसफर भी तुम ही हो।

यकीन नहीं आता कि, वो बेवफा कभी मेरा हमसफर था, और सब कुछ तो था हमारे बीच, बस ना जाने प्यार किधर था।

मेरे हमसफर मेरे हमनवां, बस सिर्फ दो कदम मेरे साथ चल, ये इल्तिज़ा तो तू मेरी मान ही ले, ऐसा न हो मैं हो जाऊं कल।

तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र, मेरा मरहबा कोई और है, मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है, मेरा रास्ता कोई और है।