Dard Bhari
Shayari
उसे जाने की जल्दी थी तो आँखों ही आँखों जहाँ तक छोड़ सकता था वहाँ तक छोड़ आया हू
तरस आता है मुझे अपनी मासूम सी पलकों पर जब भीग कर कहती हैं कि अब रोया नहीं जाता
एक ना एक दिन हासिल कर ही लूंगा मंज़िल ठोकरें ज़हर तो नहीं जो खा कर मर जाऊंगा
अजीब सी बेताबी है तेरे बिन रह भी लेते हैं और रहा भी नहीं जाता
मेरी जगह कोई और हो तो चीख उठे मैं अपने आप से इतने सवाल करता हूँ
बड़ी हसरत थी कोई हम्हे टूट कर चाहे लेकिन हम ही टूट गए किसी को चाहते चाहते
अब मेरा हाल चाल नहीं पूछते हो तो क्या हुआ कल एक एक से पूछोगे की उसे हुआ क्या था
तेरी नाराजगी वाजिब है दोस्त मैं भी खुद से खुश नहीं आजकल
तेरी नाराजगी वाजिब है दोस्त
मैं भी खुद से खुश नहीं आजकल
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