Bachpan per shayari

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी, जवानी का लालच दे के  बचपन ले गया।

जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह, मैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे।

तभी तो याद है हमे  हर वक़्त बस बचपन का अंदाज, आज भी याद आता है बचपन का वो खिलखिलाना,   दोस्तों से लड़ना, रूठना, मनाना।

चलो के आज  बचपन का कोई खेल खेलें,  बडी मुद्दत हुई बेवजाह हँसकर नही देखा।

मै उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह, वो मेरे साथ है  बचपन की आदतों की तरह।

कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को, नींद आ जाती थी परियों की कहानी सुन कर।

लगता है माँ बाप ने  बचपन में खिलौने नहीं दिए, तभी तो पगली हमारे दिल से खेल गयी

मुखौटे  बचपन में देखे थे, मेले में टंगे हुए, समझ बढ़ी तो देखा लोगों पे चढ़े हुए।